स्वामी विवेकानंद: युवाओं के आदर्श

नमस्कार, सकारात्मकता को समर्पित संप्रभा ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम बात करने जा रहें हैं एक ऐसी शख्सियत के बारे में जिन्होनें अपने जीवन द्वारा मानव सभ्यता को एक नई व उज्ज्वल  दिशा दिखाने का कार्य किया। एक ऐसे मार्गदर्शक जिन्होनें वैज्ञानिकता और आध्यात्मिकता के अद्भुत संगम की लौ जलाई। स्व-अभिप्रेरणा एवं आत्मविश्वास किस प्रकार मनुष्य को उन्नति के पथ पर अग्रसर करता है, इसका संदेश उन्होंने अपने कर्मों व रचनाओं द्वारा दिया। कोई भी व्यक्तित्व यूँ ही आदर्श नहीं हो जाता, इसके पीछे होती है उनकी दृढ़ता, उनका मनोबल, उनके प्रेरणास्पद कर्म एवं उनके द्वारा प्रस्तुत  किए गए प्रतिमान। आइए जानते हैं कि क्यों स्वामी विवेकानंद युवाओं के आदर्श कहे जातें हैं-



बदलाव की पद्धति

स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार सकारात्मक सामाजिक एवं सांस्कृतिक बदलाव हिंसक क्रांति से नहीं, बल्कि गहन एवं यथोचित शिक्षा द्वारा लाए जाते हैं। ऐसी शिक्षा, जो व्यक्ति में निहित उसकी क्षमताओं का पूर्ण विकास करने में सक्षम हो, ही बदलाव की वाहक होती है। वे मानते थे कि वास्तविक बदलाव कर्म द्वारा ही संभव है तथा उनका विशेष बल सदैव कर्म पथ पर अग्रसर होने की ओर ही रहा। उन्होनें कहा भी है: "Work, work, work- I care for nothing else. Work, work, work, even unto death!”

सकारात्मक मनोविज्ञान और आध्यात्म का अद्भुत संगम :

हालाँकि मनोविज्ञान की शाखा सकारात्मक मनोविज्ञान का जन्म एवं विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद आई मनोविज्ञान की चौथी लहर के रूप में हुआ जब तक स्वामी जी स्वयं जीवित ही नहीं थे परंतु उनके संदेश स्पष्ट रूप से वैज्ञानिक शब्दावली में सकारात्मक मनोविज्ञान के सिद्धांत ही कहे जाएँगे। उनके ये संदेश प्राचीन हिंदू आध्यात्मिक दर्शन से प्रेरित थे। उन्होनें वेदांत का गहनता से अध्ययन किया था। उनके संदेशों की प्रभावशीलता और सकारात्मक मनोविज्ञान से जुड़े होने का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी भरी सभा में उनकी रचनाओं के एक-दो वाक्य उद्धृत मात्र कर देने से संपूर्ण श्रोता वर्ग में एक विलक्षण ऊर्जा का संचार हो जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि उन्होंने अपने जीवन द्वारा सकारात्मक मनोविज्ञान और आध्यात्म का अद्भुत दर्शन प्रस्तुत किया।

जीवन की सुंदरता में विश्वास:

वे सिखाते हैं की हमें कभी जीवन से विश्वास नहीं खोना चाहिए। हमारे साथ जो भी घटनायें घटित होती हैं उनका कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य होता है यदि हम यह कहते हैं कि अमरे साथ ग़लत हो रहा है तो संभवतः हमारे दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है। इस प्रकार वे दृष्टिकोण में सकारात्मकता लाकर एक खूबसूरत जीवन की ओर हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं। जीवन गुलाबों की सेज तो नहीं परंतु जिस प्रकार हम गुलाब को बिना काँटों के बारे में विचार किए पसंद करते हैं, जीवन को ठीक उसी प्रकार जिया जाना चाहिए। 

भावों की शक्ति में विश्वास:

वे कहते हैं कि हम जिस प्रकार से अपने मन में भाव लाते हैं, हमारा जीवन उसी प्रकार का होता है। अतः जीवन में सकारात्मक भावों के साथ रहने से हमारा आस-पास का वातावरण, हमारी परिस्थितियाँ उसी प्रकार की बनती चली जाती है। वस्तुतः यह सुप्रसिद्ध 'आकर्षण का सिद्धांत' हैं। इस सिद्धांत के अनुसार हम जैसा अपने आप को अनुभव करते हैं, जैसा सोचते हैं, हमारी जिंदगी वैसी ही बन जाती है। इस सिद्धांत का गहन वर्णन Rhonda Byrne की पुस्तक 'The Secret' में किया गया है। अतः स्पष्ट है कि सकारात्मक विचारों की शक्ति में विवेकानंद जी का अटूट विश्वास था जो आज के युवा को एक उज्ज्वल राह का प्रदर्शन करता है।

प्रेम अर्थात् जीवन

स्वामी विवेकानंद जी प्रेम को ही जीवन का नियम मानते थे। उन्‍होंने कहा भी है: "Love is expansion and selfishness is contraction"  वस्तुतः प्रेमपूर्वक जीवन व्यतीत करने से जीवन की अधिकांश समस्याओं का हल सम्भव है एवं यही स्वामी जी का संदेश था। हम अगर एक सकरात्मक दृष्टिकोण अपनाकर प्रेमपूर्वक रहने का संकल्प कर लें तो बहुत से द्वंद्व तो स्वतः ही समूल नष्ट हो जाएँगे।

नियमित रूप से सीखते रहने की प्रवृत्ति:
स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार जीवन का लक्ष्य है: ज्ञान प्राप्ति। मानव को सदैव इस लक्ष्य की ओर उन्मुख रहना चाहिए। हमें प्रतिदिन कुछ ना कुछ नया सीखते रहना चाहिए जिससे हम स्वयं तथा अपने समाज का सक्रियता से विकास कर सकें। हमें अपने जीवन के प्रत्येक क्षण अच्छा सीखने की लालसा होनी चाहिए तभी हम अपने जीवन को सार्थक दिशा प्रदान कर पाएँगे।

अपने आदर्शों पर दृढ़ रहना:
स्वामी विवेकानंद जी कहते थे की हमें अपने आदर्शों पर दृढ़ रहने के लिए सभी को प्रेरित करना चाहिए और जहाँ तक हो सके ये आदर्श सत्य से निकटतम हों। हमें ऐसे कार्य नहीं करने चाहिए जिससे हमारा मन अशांत हो, हमें सत्य के पथ पर चलते हुए अपने आदर्शों का अनुसरण करना चाहिए। यदि हम सब अपने आदर्शों पर दृढ़ रहेंगे तो निश्चित ही एक युवा के रूप में समाज को बेहतर दिशा प्रदान कर पाएँगे।

अपने अंतर्मन का श्रवण:
स्वामी विवेकानंद जी अपने अंतर्मन के श्रवण की बात कहते थे। उनके अनुसार स्वयं की आत्मा से बढ़कर कोई शिक्षक नहीं, अतः अपने अंतर्मन का ध्यान निरंतर करते रहें। यदि हम अपने अंतर्मन का सदैव श्रवण करते हैं तो हम कभी भी ग़लत राह पर नहीं जा सकते क्योंकि आत्मा या अंतर्मन कभी भी ग़लत दिशा में नहीं जा सकता है तथा सदैव सही पथ का प्रदर्शन करता है।

अलग सोच:
स्वामी विवेकानंद जी अलग सोच के साथ जीने की बात करते थे। जैसा की सर्वविदित है कि अलग और सकारात्मक दिशा में चलने वाला व्यक्ति सदैव सफलता के पथ पर रहता है क्योंकि अपने आस-पास की घटनाओं के प्रति वह एक अलग  नज़रिया रखता है तथा एक अलग सोच उसे उस दिशा में ले जाती है जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।

निष्कर्ष:
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि स्वामी विवेकानंद जी अपने कर्मों और संदेशों के कारण युवाओं के आदर्श कहे जाते हैं। उनके द्वारा प्रतिपादित दर्शन का अनुकरण हम सब की जिंदगी में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। भारतीय संस्कृति के मूल्यों से ओत-प्रोत दर्शन होने के बावजूद यह दर्शन एक अद्वितीय सार्वभौमिकता रखता है। वस्तुत: यह प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता इतनी समृद्ध है कि पूरे विश्व को राह दिखाने में सक्षम है। स्वामी विवेकानंद जी ने स्वयं इसका प्रमाण ११ सितंबर १८९३ को शिकागो सम्मेलन में अपने वक्तव्य में दिया था। अतः हमें सदैव अपने भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए इस गर्व की सार्थक अनुभूति के लिए उनके द्वारा दिए गये दर्शन को जीने का प्रयास करना चाहिए। यदि हम उनके दर्शन के अनुकरण का १% भी प्रयास करें तो उनके दार्शनिक सिद्धांतों के अन्तर्सम्बन्धित होने के कारण हम स्वतः: ही  आदर्शत्व से जुड़ते चले जाएँगे। 

सन्दर्भ:
  1. डॉ. भाबेश प्रामाणिक,प्रो. निरंजन मैइटी,  श्री अरुणंसु बेरा, "स्वामी विवेकानंद: टुडे एंड टुमॉरो", IJRAR
  2. श्रीमती रिचा त्रिपाठी, डॉ. के. पी. सिंह, डॉ. संदीप वेरम, "Swami Vivekananda’s Philosophy of Work and Its Relevancy with Modern Era", International Journal of Education and Psychological Research (IJEPR) 
  3. जगदीश कौर, "स्वामी विवेकानंद: ए ट्रू रेवोल्यूशनरी", International Journal of Advanced Educational Research. 

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