सामाजिक तनाव का समाधान

आज हम संप्रभा पर जानेंगे कि कैसे सामाजिक तनाव की समस्या को समझकर उसका प्रभावी समाधान किया जाए।


सामाजिक तनाव वस्तुतः एक ऐसा तनाव है जिसकी उत्पत्ति किसी के व्यक्तिगत संबंधों एवं सामाजिक पर्यावरण के कारण होती है। (आना, 2018) तनाव को अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है। सामाजिक तनाव इसी का भाग है। इस विषय पर चर्चा इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि वर्तमान में आधुनिक सुविधाएँ होने के बावजूद कोरोना से बचाव के लिए जाने-अनजाने हमारा विसमाजीकरण हो गया जिससे अकेलेपन के कारण तनाव बढ़ गया। यह एक प्रकार से सामाजिक तनाव ही था।


विद्यार्थियों के सन्दर्भ में सामाजिक तनाव की समस्या के निबटान के लिए चार प्रमुख तत्व मुख्य भूमिका निभाते हैं:


१. परिवार


२. सहपाठी


३. विद्यालय अथवा महाविद्यालय


४. अन्य कारक


परिवार:

पारिवारिक परिस्थितियाँ तनाव से निबटान में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। खुशनुमा माहौल विद्यार्थियों को सर्वश्रेष्ठ रूप में विकसित होने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार अभिभावक के रूप में हमारी ज़िम्मेदारी है कि घर में किसी प्रकार के झगड़े से बचें, अपने बच्चों को उचित समय दें, उनकी रूचियों को समझने का प्रयास करें तथा उन्हें जहाँ मानसिक सहयोग की आवश्यकता हो वह देने का प्रयास करें।


सहपाठी:

विद्यार्थी होने के नाते हमारी संगति और आस-पास का वातावरण बहुत महत्त्वपूर्ण है।  हमें ऐसे साथियों से दूरी बनानी होगी जिनके चिंतन में नकारात्मकता झलकती है। प्रसिद्ध मोटिवेशनल स्पीकर जिम रोह्न के अनुसार, "हम उन ५ लोगों का औसत होते हैं जिनके साथ हम सर्वाधिक समय व्यतीत करते हैं।“आज के इस आधुनिक दौर में क्यों ना हम जुड़ें ऐसी कम्यूनिटी से जिनके लक्ष्य और विचारों को आप अपनाना चाहते हैं।   इसके लिए आप विभिन्न सोशियल मीडिया एवं ऑनलाइन उपलब्ध कम्यूनिटी एंगेज्मेंट प्रोग्रॅम्स और लर्निंग प्रोग्रॅम्स से जुड़ सकते हैं। अगर आपका कोई साथी है जो सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता रखता है और उच्च विचारों का अनुसरण करता है तो उससे जुड़े रहने के लिए सदैव प्रयासरत रहें।

विद्यालय:

विद्यालय या महाविद्यालय का वातावरण भी तनाव प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। विद्यालय में अनुशासन के साथ लचीलापन होना, शिक्षकों का सपोर्ट मिल पाना, खुला वातावरण, एक्सप्लोरेशन की आज़ादी आदि बहुत-से महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जिनका विद्यालय शिक्षकों एवं विद्यालय प्रबंधन को ध्यान रखना होता है। विद्यालय अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करें तो सामाजिक तनाव की समस्या को बहुत हद तक समाप्त किया जा सकता है। आज कल के प्रतियोगी वातावरण ने इस तनाव को बहुत बढ़ा दिया है, इस स्थिति में विद्यालयों की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि वह मानसिक स्वास्थ्य संबंधी पक्षों पर विशेष ध्यान दे।

रचनात्मकता में लीन होना:

विषम परिस्थितियों में रचनात्मकता बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। आप कुछ ऐसा करें जो आपको करना पसंद है, जैसे- लेखन, नृत्य, गायन, ड्रामा, कुकिंग, या कुछ भी वैसा जो आपके मन को संतुष्ट करे। वर्तमान में इंटरनेट पर उपलब्ध विभिन्न साधनों जैसे- ब्लॉग, यूटयूब, या अन्य सोशियल मीडिया के माध्यम से अपने Passion को Profession में बदल सकते हैं जिससे आर्थिक समस्याओं का हल भी संभव है और मानसिक संतुष्टि तो होगी ही।

अब हम अपनी चर्चा को एक व्यापक रूप देते हुए और केवल विद्यार्थी जीवन तक ही सीमित ना रखते हुए कुछ बातें करते हैं:

१. अपना मेंटर चुनें:

मेंटर दो प्रकार के होते हैं: (i) वास्तविक मेंटर (ii) वर्चुअल या आभासी मेंटर

वास्तविक मेंटर वे होते हैं जो आपके लिए जीवन की कठिन परिस्थितियों में मार्गदर्शन के लिए प्रत्यक्ष रूप में उपलब्ध होते हैं। जैसे- शिक्षक, अभिभावक, रिश्तेदार या कोई मित्र। जीवन की तनावपूर्ण स्थितियों में जब आपका हित सोचने वाला व्यक्ति आपके साथ होता है तो तनाव का प्रबंधन आसान हो जाता है।

कई बार वास्तविक मेंटर को चुनना मुश्किल होता है या फिर उनके होने के बावजूद भी हम असहज महसूस करते हैं तो ऐसी स्थिति में एक वर्चुअल मेंटर का होना बहुत ही कारगर होता है। वर्चुअल मेंटर अर्थात् एक ऐसा व्यक्ति या आदर्श जिसके सिद्धांतों में आपकी विशेष आस्था है।ऐसे व्यक्ति की जीवनियों को पढ़ें, विभिन्न परिस्थितियों में उनकी अनुक्रियाओं का अध्ययन करें और उनके विचारों के अनुसार अपनी विभिन्न परिस्थितियों से जूझने का प्रयास करें, उनकी ग़लतियों से सीख लें।

२.राजयोग का अभ्यास :

अपनी सोच इस प्रकार की बनाएँ कि जो होता है, अच्छे के लिए होता है। नकारात्मक विचारों से तुरंत अपना ध्यान हटा लें और अपने आस-पास की चीज़ों का निरीक्षण करें। जैसी आपकी सोच होगी, वैसी ही परिस्थितियों को आप न्योता देंगे, यह आकर्षण का सिद्धांत कहलाता है। अतः सकारात्मक सोच का अभ्यास करते रहें और सकारात्मक परिस्थितियों में स्वयं के होने की कल्पना करें।

३. पहल करना सीखें:

सामाजिक अनुकूलन के लिए यह गुण बहुत महत्त्वपूर्ण है। जब हम विभिन्न परिस्थितियों में शुरुआत करना सीख जाते हैं तो हम अपने आस-पास के लोगों से एक अच्छा संप्रेषण संबंध स्थापित कर पाते हैं जिससे तनाव उत्पन्न नहीं होता वरना हीन भावना एक तनाव का कारण ज़रूर बन जाती है।

४. मस्त रहें और नियत साफ रखें :

अगर आप अच्छे और ईमानदार  हैं तो ईश्वर में विश्वास रखें, आपकी परीक्षा ज़रूर हो सकती है पर आप कभी असफल नहीं हो सकते। अगर स्वयं और समाज के प्रति सत्यनिष्ठा है तो जो भी होगा, हमारे अच्छे के लिए ही होगा। कई बार इस बात का पता बहुत बाद में लगता है। आख़िरकार ईश्वर को हमें जवाब भी तो देना है।

सन्दर्भ:

1.      Ana (Jun 1, 2018). Social Stress: The Cause, Effects and Solutions

2.      Levin, S. & Scotch, N.A. (1970). Models of Stress. Social Stress. Aldine Publishing Company.

3.      Aneshensel, C.S. (1992). Social Stress: Theory and Research. Annu. Rev. Sociol. 1992.18:15-38.

लेखक: लविश रहेजा एवं रामजीवन बिश्नोई

 

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