बेरोज़गारी की समस्या का वैयक्तिक स्तर पर समाधान
स्वागत है आपका संप्रभा के ब्लॉग पर, संप्रभा परिवार आशा करता है कि आप अपने जीवन में एक सकारात्मक सोच के साथ जीवन में प्रगति पथ पर अग्रसर हैं। आज हम बेरोज़गारी जैसी महत्त्वपूर्ण समस्या के उपेक्षित-से पक्ष की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। निश्चित ही, ये ऐसी समस्या है जिस पर सरकारी स्तर के प्रयासों और नीतियों का सर्वाधिक महत्त्व है पर आज हम उस बिंदु से हटकर कुछ बात करते हैं:
बेरोज़गारी एक बहुआयामी समस्या है। गहन अध्ययन की दृष्टि से देखा जाए तो इस समस्या के अनेक पक्ष हैं जिन पर विश्लेषणात्मक चर्चा संभव है उदाहरणार्थ: अर्थव्यवस्था के स्थूल दृष्टिकोण के अंतर्गत इस समस्या के विभिन्न नीतिगत, राजनीतिक एवं सामाजिक कारकों पर बात की जा सकती है लेकिन आज की चर्चा का केंद्र कुछ अलग है। आज हम बात करेंगे कि हम स्वयं के स्तर पर आत्मनिर्भर होने के लिए क्या कर सकते हैं:
यहाँ हम कुछ तथ्यों को समझते हैं:
स्वयं को सही मायनों में शिक्षित करना
भारत की शिक्षा पद्धति की अपनी खामियाँ हैं, जिनका निबटान समय एवं प्रभावी शिक्षा नीतियों की अनुप्रोयाजाना पर निर्भर करता है परंतु यहाँ एक बिंदु है जिस पर हम अपने स्तर पर कार्य कर सकते हैं, वह है अपने लक्ष्यों और अभियोग्यता का सामंजस्यपूर्ण निर्धारण अर्थात् अपनी योग्यताओं एवं क्षमताओं के अनुसार अपने लक्ष्यों का निर्धारण। यह किसी भी प्रकार की सफलता की पहली सीढ़ी होती है।
- यदि एक बार अपने लक्ष्यों को निर्धारित कर लेते हैं (ध्यान दें लक्ष्य एक से अधिक भी हो सकते हैं), तो उसके बाद हमें उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक उद्देश्यों को सूचीबद्ध करना होता है।
- उद्देश्य वे साधन होते हैं जिनके द्वारा लक्ष्य तक पहुँचने का प्रयास किया जाता है। ये उद्देश्य अथवा साधन केवल भौतिक रूप में न होकर हमारे द्वारा विकसित की जा सकने वाली और हमारे लक्ष्य के लिए आवश्यक योग्यताओं और क्षमताओं के रूप में भी होते हैं। हमें इन्हें अपना ध्येय निश्चित करके इन पर केंद्रित गतिविधियों को अपना अधिकांश समय देना है।
- उदाहरण के लिए यदि हम लेखन के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं तो हमें हमारे लेखन की विधा (जिस विधा में हम लिखना पसंद करते हैं) को निश्चित करना होगा, उसके पश्चात उस विधा के लिए आवश्यक योग्यताओं यथा शोध में अपनी रूचि को पुष्ट करने के लिए अपने विषय के विभिन्न शोध ग्रंथों एवं आलेखों के अध्ययन, अभ्यास, अच्छे शिक्षक से समीक्षा आदि कार्य सूचीबद्ध करने होंगे जिन सबका अंतिम लक्ष्य हमें एक कुशल लेखक बनाना होगा।
एक बार कुशलता हासिल हो जाने पर हम कहीं नहीं रुक सकते या तो हमें हमारी ड्रीम जॉब आसानी से मिल जाएगी अन्यथा हम खुद के बल पर इंटरनेट की सहायता से अपना रीडर वर्ग स्वयं ढूँढ कर आर्थिक समस्याओं से निजाद पा सकेंगे और इन सब के लिए नैतिक एवं सामाजिक मूल्य तो आवश्यक हैं ही।
Keep Exploring
एक और समस्या जो हमारे साथ है, वह है अवसरों का अभाव नहीं अपितु अवसरों की जानकारी का अभाव। हमें समय निकालकारअपने निर्धारित लक्ष्य क्षेत्र के नवीन सृजित पक्षों को निरंतर देखते रहना चाहिए, निश्चित ही अगर हम इस ब्लॉग पर पहुँच पा रहे हैं तो इसका अर्थ है कि हम सूचना क्रांति से जुड़े हुए हैं। अतः इंटरनेट का उपयोग करके हम अपनी रुचियों और योग्यताओं को एक नया आयाम दे सकते हैं।
Promoting Indeginous Innovations through the Development of Practical Skills
हम अपनी व्यावहारिक दक्षताओं को विकसित करके भी बेरोज़गारी की समस्या का बड़े पैमाने पर हल कर सकते हैं। इसके दो पक्ष हैं:
- कुछ नवनिर्माण एवं शोध की योग्यता का विकास करके हम अपनी आर्थिक स्वतंत्रता को प्राप्त कर सकते हैं।
- देश के भीतर के नवाचार एवं देश में विकसित प्रोद्योगिकी देशवासियों के लिए नये रोज़गार के अवसर सृजन करता है। वस्तुतः बहुत अधिक विदेशी तकनीक का उपयोग बेरोज़गारी का एक बड़ा कारण है।
अपनी सोच को महत्त्व देकर स्वयं नौकरी प्रदाता बनना
हम सब के मन में नज़ाने आए दिन कितने ही नये विचार, नवाचारी प्रयोग एवं कुछ नया करने की, नया सोचने की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है, पर हम यहाँ खुद की ही उपेक्षा कर देते हैं शायद इससे बड़ा दुर्भाग्य हमारा नहीं हो सकता। ईश्वर ने हम सभी को अपनी-अपनी अद्वितीय क्षमताएँ दीं हैं जिनका उपयोग करके हम अपने आस-पास की विभिन्न समस्याओं को हल कर सकते हैं। अतः हमें अपनी सूझ के विकास पर ध्यान देते हुए अपने नवाचारी विचारों को मूर्त रूप देने का प्रयास करना चाहिए जिससे हम Job Provider बनें न कि Job Seeker।
भविष्य के ट्रेंड को समझना
हमें भविष्य के ट्रेंड को समझने की ज़रूरत है। भविष्य में केवल वही रोज़गार के अवसर जीवित रहेंगे जिनमें निरंतर प्रोग्रेस की संभावना होगी। जो हमारी मानसिकता है कि सरकारी नौकरी पाकर जीवन में स्थायित्व आ जाएगा, इस सोच का भविष्य में कोई अस्तित्व नहीं है। हमें अपनी सोच को प्रगातिवादी बनाना होगा अन्यथा प्रोद्योगिकी का आगमन हमें Jobless कर देगा। इस बात को अच्छे से समझने की ज़रूरत है।
सन्दर्भ:
Singh, R., Raj, A. (2018). CAUSES OF YOUTH UNEMPLOYMENT: EMERGING ISSUE IN INDIAN ECONOMY. International Journal for Innovative Engineering and Management Research, 7(13).
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Great work sir ji
ReplyDeleteThank you ji
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