The basic principles of new education policy 2020

आशा का संचार करते नई शिक्षा नीति के आधारभूत सिद्धांत

किसी भी योजना की सफलता के निर्धारण में उसके आधारभूत सिद्धांतों का अद्वितीय स्थान होता है। नई शिक्षा नीति के आधारभूत सिद्धांतों के संश्लेषित रूप के अनुसार "यह विद्यार्थियों में भारतीयता के बीजों के अंकुरण को मध्यनजर रखते हुए उन्हें नैतिक मूल्यों तथा मौलिक कर्त्तव्यों की शिक्षा प्रदान करना चाहती है।" साथ ही यह शिक्षा नीति बालक-बालिकाओं के सर्वांगीण विकास के साथ-साथ शिक्षकों के समुचित प्रशिक्षण एवं अवधारणात्मक विकास के लिए प्रतिबद्ध है।

 देश की बहुभाषिकता एवं संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के मूल्यों से प्रेरित यह शिक्षा नीति समावेशी शिक्षा एवं शिक्षा की सार्वभौमिकता हेतु भी उचित प्रावधान करती है।

शिक्षा में शोध-गुणवत्ता को बढ़ावा देना तथा जीवन-कौशलों के विकास के साथ-साथ शिक्षा में लचीलापन एवं सहसंबंधों की स्थापना भी इस शिक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य है

नई शिक्षा नीति का यथावत क्रियान्वयन भारतीय समाज को प्रगति के असीमित आसमान की ओर लेकर जा सकता है।


ECCE:  मानसिक विकास हेतु एक नवाचार

ECCE अर्थात् प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा

नई शिक्षा नीति के विद्यालयी शिक्षा के पैटर्न 5+3+3+4 के अंतर्गत शुरुआती तीन वर्षों में आँगनबाड़ी अथवा प्री-स्कूलिंग की अनुशंसा की गयी है जो शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित है।

मानसिक विकास की दृष्टि से प्रारम्भिक बाल्यावस्था (कुछ मनोवैज्ञानिक 6 वर्ष तक की आयु को शैशावस्था में ही शामिल करते हैं) एक महत्वपूर्ण अवधि होती है। इसका अंदाज़ा गैसेल महोदय की इस बात से लगाया जा सकता है कि

"बालक प्रारम्भ के 6 वर्षों में बाद के 12 वर्षों का दुगुना सीख लेता है।"

इसी वैज्ञानिक सिद्धांत को मध्यनज़र रखते हुए हमारे शिक्षाविदों ने ईसीसीई को हरी झंडी दी है।

इसका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों के विकास पर ज़ोर देना है ताकि वे अपनी परिवारिक पृष्ठभूमि से परे अपनी क्षमताओं के संपूर्ण विकास हेतु उचित अवसर प्राप्त कर सकें। यहाँ मुख्यतः किन्डरगार्टन और खेल विधि जैसी शिक्षण प्रविधियों के विकास पर ज़ोर दिया जाएगा।

इस स्तर पर बच्चों के मानसिक एवं संवेगात्मक विकास पर विशेष नज़र रखी जाएगी ताकि उन्हें कुशल नागरिकों के रूप में विकसित किया जा सके।

बुनियादी साक्षरता एवं आवश्यक स्वास्थ्य जाँच

भारत के विद्यालयों में समय-समय पर होने वाले सर्वेक्षणों के आधार पर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक निष्कर्ष प्रदान करती है कि भारत में लगभग 5 करोड़ ऐसे बच्चे हैं जो विद्यालय तो जाते हैं या विद्यालय छोड़ चुके हैं लेकिन उन्हें बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान भी नहीं हैइन चिंताजनक एवं चिंतन योग्य तथ्यों को मध्यनज़र रखते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह प्रावधान किया गया है कि विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात 30:1 रखा जाए तथा पिछड़े जिलों के विद्यालयों में इसे 25:1 रखा गया है ताकि व्यक्तिगत विभिन्नता आधारित शिक्षा प्रदान करने के सम्प्रत्यय को मजबूती के साथ लागू किया जा सके।

  • योजना के अंतर्गत सन् 2025 तक भारत के लिए सार्वभौमिक बुनियादी शिक्षा का लक्ष्य रखा गया है।

  • NCERT उन विद्यार्थियों के लिए जो कक्षा 1 में है तथा जिन्हें बुनियादी साक्षरता का ज्ञान नहीं है, 3 माह का एक मॉड्यूल उपलब्ध कराएगी जो गतिविधि वर्कबुक आधारित होगी इस प्रकार प्रारम्भिक स्तर पर निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण का कार्य संभव हो सकेगा

  • दीक्षा (The Digital Infrastructure for Knowledge Sharing) पर राष्ट्रीय ज्ञान का भंडार उपलब्ध रहेगा।

  • पारस्परिक अध्ययन को महत्त्व देते हुए Peer Tutoring की अनुशंसा की गयी है जो काफ़ी बच्चों के लिए वरदान साबित हो सकती है।

  • नई शिक्षा नीति के अनुसार अध्ययनों में यह पाया गया है कि सुबह का नाश्ता करने के पश्चात बच्चे कठिन विषयों का अध्ययन प्रभावी रूप से कर पाते हैं, इसलिए इस शिक्षा नीति में बच्चों को सुबह का नाश्ता तथा गुणवत्तापूर्ण पौष्टिक मध्याह्न भोजन (मिड-डे मील) देने की अनुशंसा की गयी है यह निश्चित ही ग़रीब बच्चों के विकास में अपना आंशिक योगदान अवश्य देंगे।

  • संदर्भ : नई शिक्षा नीति का आधिकारिक दस्तावेज

  • लेखक:RAJENDRA MINA

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