महिला समानता एवं सशक्तिकरण में महिलाओं का सक्रिय होना अनिवार्य
शीर्षक :- महिला समानता और सशक्तिकरण में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण
26 अगस्त महिला समानता दिवस,8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस इत्यादि तिथियों पर हमारा समाज महिलाओं की सुरक्षा एवं समानता के लिए मानो अटल प्रतिज्ञा करता है लेकिन जब इन तिथियों के कुछ पश्चात ही कोई दरिंदा फिर से किसी की मां और बहन के साथ बदसलूकी करता है तो समाज के ठेकेदारों की संवेदनाएं मृत प्रायः सी नजर आती हैं। अब मसला यह है कि महिला समानता एवं सशक्तिकरण के क्षेत्र में घर की नारियां कैसे नायिका साबित हो सकती हैं इस पर मैं अपने कुछ विचार रखना चाहूंगा इन बिंदुओं का तात्पर्य यह नहीं है कि महिलाओं की दुर्दशा के लिए कोई महिला जिम्मेदार है अपितु इनका भाव यह है कि यदि महिलाएं पहल करें तो नारी सशक्तिकरण त्वरित गति से हो सकता है
यदि बचपन से ही एक माता अपनी बेटी को शारीरिक रूप से दुर्बल होने की रूढ़िगत शिक्षा देने की बजाय उसे झांसी की रानी और हिमा दास तथा कालीबाई जैसी प्रेरणास्रोत रही महिलाओं की कहानी सुनाएं तो शायद उसका मानसिक विकास अपेक्षाकृत बेहतर हो पाएगा
यदि परिवार में एक सेब के दो टुकड़े करके मां दोनों बच्चों को बराबर दे तो शायद समानता का बेहतर प्रतिरूप सामने आएगा
यदि कन्या भ्रूण हत्या करवाते समय मां की ममता जरा भी जाग उठे तो संसार की कोई शक्ति नहीं जो उस मां के जीते जी गर्भ में पल रही पुष्प सी बालिका को धरातल पर आने से पहले ही मार दे
माताएं अपनी बेटियों को पराया धन समझने की बजाय पुरुष प्रधान मानसिकता के परिवार की इच्छा के विपरीत यदि विद्यालय जाने को प्रेरित करें तो हो सकता है कि उन्हें संघर्ष का सामना करना पड़े लेकिन वे अपने मातृत्व के कर्तव्य का अधिक कुशलता के साथ निर्वहन कर पायेंगी
घर की बेटियों को तमाम तथाकथित मर्यादाओं में जकड़ने की बजाय बजाय यदि प्रत्येक घर की महिलाएं अपने बेटों को ऐसे संस्कार दें की यह किसी पराई नारी के साथ अपनी अश्लील मानसिकता का परिचय ना दें तो शायद महिला सशक्तिकरण के रथ को अधिक गति मिल सकती है
उपरोक्त बिंदुओं में विशेष रूप से माता का महत्व इसलिए रेखांकित किया गया है क्योंकि जीवन के प्रारंभिक 6 वर्ष जो मानसिक विकास का स्वर्णिम काल होते हैं उनमें बहुत कुछ शिक्षाएं माता द्वारा दी जाती हैं तभी तो हम मां को पहला गुरु मानते हैं
यदि साहित्य, कला, विज्ञान,वाणिज्य, संगीत, खेल, राजनीति एवं अन्य सभी क्षेत्रों में अपनी सफलता का लोहा मनवाने वाली साहसी महिलाएं महिलाओं के लिए आगे आए तो इससे बेहतरीन प्रेरणास्पद प्रसंग क्या हो सकता है
यद्यपि महिला सशक्तिकरण एवं समानता की प्राप्ति पुरुष एवं महिला दोनों के साझा प्रयासों से ही हो सकती है लेकिन इसके लिए महिलाओं का सक्रिय होना आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य भी है।
लेखक : RAJENDRA MINA
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