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Showing posts from September, 2020

Psychological reasons and solutions of mental stress

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  Once again I, Rajendra welcome you at the blog of positivity spreading group Samprabha . As we all know that psychological factors include interest, needs and motives. That's why we can say that the factors responsible for mental stress are same as mentioned above. Now we will discuss the core reasons of mental stress with solutions. 1)Need vs Availablity A person having balanced and instructed needs usually doesn't become the victim of mental stress. Because with fulfilling his/her requirements,his/her motivation level and work strength increases gradually. That's why if we want to free from mental stress then we should use our energy in integrated form. 2)Instant incidents If anyone suppose to fix this situations of daily life then it is a vain effort. A person should be always prepared to face the  problems besides situational inertia and he or she should use related adjustment tools. For example if anyone loses his or her family member then it is natural to become s

बेरोजगारी उन्मूलन में सरकार से अपेक्षाएं

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नमस्कार दोस्तों आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है सकारात्मकता के संरक्षक एवं प्रसारक समूह संप्रभा के ब्लॉग पर। आज हम बात करने जा रहे हैं कि किस प्रकार  सरकार के सकारात्मक और नियोजित प्रयासों से भारत के बेरोजगारों के लिए अवसर सृजित किए जा सकते हैं तथा उनके जीवन में खुशहाली स्थापित की जा सकती हैं- 1) सरकार सबसे पहले सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए वार्षिक कैलेंडर निर्धारित करें एवं इसकी शत-प्रतिशत अनुपालना सुनिश्चित की जाए। 2) भारत के विद्यालयों में क्रियात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधिक प्रयासों की अपेक्षा है अतः सरकार नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सुचारू क्रियान्वयन के लिए आवश्यक निर्देश जारी करें एवं समय-समय पर इसकी समीक्षा के प्रावधान भी किए जाएं ताकि भारत का विद्यार्थी रटने की बजाय कौशल ग्रहण करने पर अधिक बल दे और अपनी आजीविका प्राप्त करने के लिए असहाय सा नजर ना आए। 3) भारत खनिजों की दृष्टि से एक संपन्न देश है लेकिन अभी भी हम कच्चा माल सस्ती दरों पर विदेशों को भेजते हैं और वहां से आयात किया गया तैयार माल हमें आसमान छूने वाली दरों पर मिलता है इसके समाधान हेतु पूर्व भारतीय राष्ट

बेरोज़गारी की समस्या का वैयक्तिक स्तर पर समाधान

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स्वागत है आपका संप्रभा के ब्लॉग पर, संप्रभा परिवार आशा करता है कि आप अपने जीवन में एक सकारात्मक सोच के साथ जीवन में प्रगति पथ पर अग्रसर हैं। आज हम बेरोज़गारी जैसी महत्त्वपूर्ण समस्या के उपेक्षित-से पक्ष की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। निश्चित ही, ये ऐसी समस्या है जिस पर सरकारी स्तर के प्रयासों और नीतियों का सर्वाधिक महत्त्व है पर आज हम उस बिंदु से हटकर कुछ बात करते हैं:  बेरोज़गारी एक बहुआयामी समस्या है। गहन अध्ययन की दृष्टि से देखा जाए तो इस समस्या के अनेक पक्ष हैं जिन पर विश्लेषणात्मक चर्चा संभव है उदाहरणार्थ: अर्थव्यवस्था के स्थूल दृष्टिकोण के अंतर्गत इस समस्या के विभिन्न नीतिगत, राजनीतिक एवं सामाजिक कारकों पर बात की जा सकती है लेकिन आज की चर्चा का केंद्र कुछ अलग है। आज हम बात करेंगे कि हम स्वयं के स्तर पर आत्मनिर्भर होने के लिए क्या कर सकते हैं:  यहाँ हम कुछ तथ्यों को समझते हैं:  स्वयं को सही मायनों में शिक्षित करना भारत की शिक्षा पद्धति की अपनी खामियाँ हैं, जिनका निबटान समय एवं प्रभावी शिक्षा नीतियों की अनुप्रोयाजाना पर  निर्भर करता है परंतु यहाँ एक बिंदु है जिस पर हम अपन

तनाव: शारीरिक पक्ष एवं समाधान

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स्वागत है आपका संप्रभा के ब्लॉग पर, आज हम चर्चा करने जा रहे हैं: तनाव के शारीरिक पक्ष के बारे में। जैसा की सर्वविदित है कि मानसिक तनाव बहुत-सी शारीरिक परेशानियों को जन्म देता है। तनाव अधिक होने पर सामान्य जुकाम-बुखार से लेकर हृदयाघातों का ख़तरा बढ़ जाता है। तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है।  तनाव मनुष्य को निष्क्रिय बना देता है।(Kolehmainen & Sinha, 2015).  विभिन्न शोधों से इस सन्दर्भ में दो बातें स्पष्ट होती हैं: १. शारीरिक गतिवधियाँ तनाव को ख़त्म करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। २. तनाव सक्रिय शारीरिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न करता है। अतः तनाव के समुचित प्रबंधन के लिए केवल शारीरिक गतिविधियाँ पर्याप्त नहीं है। हमें कुछ ऐसा करना होगा कि तनाव किसी अन्य क्रियाविधि द्वारा भी कम हो। इसके लिए विभिन्न यौगिक क्रियाओं का सहारा लिया जा सकता है। ये यौगिक क्रियाएं जैव-रासायनिक रूप से हमारी मानसिक संरचना को प्रभावित करती हैं जिससे तनाव कम होता है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि योग केवल शारीरिक क्रिया नहीं है बल्कि इसमें ध्यान की क्रिया भी सम्मिलित होती है जिससे सकारात्मकता का

सामाजिक तनाव का समाधान

आज हम संप्रभा पर जानेंगे कि कैसे सामाजिक तनाव की समस्या को समझकर उसका प्रभावी समाधान किया जाए। सामाजिक तनाव वस्तुतः एक ऐसा तनाव है जिसकी उत्पत्ति किसी के व्यक्तिगत संबंधों एवं सामाजिक पर्यावरण के कारण होती है। (आना, 2018) तनाव को अनेक प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है। सामाजिक तनाव इसी का भाग है। इस विषय पर चर्चा इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि वर्तमान में आधुनिक सुविधाएँ होने के बावजूद कोरोना से बचाव के लिए जाने-अनजाने हमारा विसमाजीकरण हो गया जिससे अकेलेपन के कारण तनाव बढ़ गया। यह एक प्रकार से सामाजिक तनाव ही था। विद्यार्थियों के सन्दर्भ में सामाजिक तनाव की समस्या के निबटान के लिए चार प्रमुख तत्व मुख्य भूमिका निभाते हैं: १. परिवार २. सहपाठी ३. विद्यालय अथवा महाविद्यालय ४. अन्य कारक परिवार: पारिवारिक परिस्थितियाँ तनाव से निबटान में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। खुशनुमा माहौल विद्यार्थियों को सर्वश्रेष्ठ रूप में विकसित होने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार अभिभावक के रूप में हमारी ज़िम्मेदारी है कि घर में किसी प्रकार के झगड़े से बचें, अपने बच्चों को उचित समय दें, उनकी रूचियों

Kudos to Kader Shaikh: A Businessman Who Converted His Office into Hospital

 Today, at Samprabha  we are going to share a story of a Surat-based businessman who converted his 3-floor office (30,000 sq. feet) into 84 beds Covid-19 facilities. In June, Kader Shaikh and his family members tested positive for the Covid-19 virus. They were having hard times when admitted to the hospital as they were not properly cared for by the hospital staff. His brother who admitted in a private hospital, in his words, "was being treated as if we were taking treatment for free". When the discharging time came, the hospital handed over the bill of    ₹ 12.5 lac to Kader Shaikh. He was shocked to see the bill and even after paying such a huge amount, he saw no improvement in his brother's physique. It was then when he realised the pain of the poor. Then he talked to the MP of the region Mrs Darshana Jardosh and expressed his wish to build a hospital for Corona patients. He specified that the hospital, managed by whosoever, should run it for free i.e., all the facilit

Love for Nature : It Heals It feels

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The present Era of modernisation and development is the result of extreme exploitation of natural and human resources. We have made this development a curse for ourselves. No one can deny the effect of modernisation on different aspects of people's life. Education, communication and even social relationship have undergone different changes. Meanwhile, adolescents are the most vulnerable group suffering from the negative effects of modernisation. What is more important is that adolescent preferred to have electronic entertainment and online teaching which helps them to make more isolated. Technologies particularly substituted for nature as the source of recreation and entertainment.             But all these problems can be cured by making good relation with nature. People who are more connected with nature are happier, feel more vital and have more meanings in their lives. Humans have long intuited that being in nature is good for mind Nad body. Being closer to nature or viewing na

स्वामी विवेकानंद: युवाओं के आदर्श

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नमस्कार, सकारात्मकता को समर्पित संप्रभा ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम बात करने जा रहें हैं एक ऐसी शख्सियत के बारे में जिन्होनें अपने जीवन द्वारा मानव सभ्यता को एक नई व उज्ज्वल  दिशा दिखाने का कार्य किया। एक ऐसे मार्गदर्शक जिन्होनें वैज्ञानिकता और आध्यात्मिकता के अद्भुत संगम की लौ जलाई। स्व-अभिप्रेरणा एवं आत्मविश्वास किस प्रकार मनुष्य को उन्नति के पथ पर अग्रसर करता है, इसका संदेश उन्होंने अपने कर्मों व रचनाओं द्वारा दिया। कोई भी व्यक्तित्व यूँ ही आदर्श नहीं हो जाता, इसके पीछे होती है उनकी दृढ़ता, उनका मनोबल, उनके प्रेरणास्पद कर्म एवं उनके द्वारा प्रस्तुत  किए गए प्रतिमान। आइए जानते हैं कि क्यों स्वामी विवेकानंद युवाओं के आदर्श कहे जातें हैं- बदलाव की पद्धति :  स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार सकारात्मक सामाजिक एवं सांस्कृतिक बदलाव हिंसक क्रांति से नहीं, बल्कि गहन एवं यथोचित शिक्षा द्वारा लाए जाते हैं। ऐसी शिक्षा, जो व्यक्ति में निहित उसकी क्षमताओं का पूर्ण विकास करने में सक्षम हो, ही बदलाव की वाहक होती है। वे मानते थे कि वास्तविक बदलाव कर्म द्वारा ही संभव है तथा उनका विशेष बल सदैव कर्म

केशवानंद भारती मामले का भावी महत्व

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 केशवानंद भारती मामले का भावी महत्व समझने के लिए इस मामले को संक्षिप्त में देखते हैं: केरल सरकार ने दो भूमि सुधार कानून बनाए इनकी मदद से सरकार केशवानंद भारती के इंडनीर मठ के मैनेजमेंट पर कई सारे पाबंदियां लगाने की कोशिश कर रही थी। दरअसल इस कानून के तहत मठ की 400 एकड़ में से 300 एकड़ जमीन पट्टे पर खेती करने वाले लोगों को दे दी गई थी। केशवानंद भारती ने केरल सरकार के भूमि सुधार कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस मामले में केशवानंद जी को व्यक्तिगत राहत तो नहीं मिली लेकिन केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल मामले की वजह से एक महत्वपूर्ण संवैधानिक सिद्धांत का निर्माण हुआ जिसने संसद की संशोधन करने की शक्ति को सीमित कर दिया और इसमें निर्णय सुनाया गया कि संविधान संसद से सर्वोपरि है। न्यायिक समीक्षा, पंथनिरपेक्षता, स्वतंत्र चुनाव व्यवस्था, और लोकतंत्र को संविधान का मूल ढांचा कहा गया और यह कहा गया की मूल ढांचे को आगे आवश्यकता पड़ने पर परिभाषित करती रहेगी यानी मूल ढांचे में और क्या-क्या शामिल है यह कोर्ट आगे आवश्यकता पड़ने पर बताएगी और इस केस से भविष्य में सरकार द्वारा संविधान में जल्दबाजी

नवीन आशा दीप्ति - हमारी नई शिक्षा नीति

 शिक्षा जीवन का आधार है। समाज और देश के विकास में शिक्षा की अहम भूमिका है। अतः जीवन में शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वर्तमान सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक बदलावों के लिए नई शिक्षा नीति को मंज़ूरी दे दी है। नई शिक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों में निहित क्षमताओं को सामने लाना है। • 34 वर्षों बाद अब हमारे सामने एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति सामने आई है जो 1968 एवं 1986 के बाद तीसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति है। • इसरो के प्रमुख रह चुके डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति का 2017 में गठन किया गया और इसी समिति ने 'नई शिक्षा नीति 2020' का खाका तैयार किया है। • राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मंत्रालय के नाम के परिवर्तन का सुझाव दिया है। पहले इसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नाम से जाना जाता था अब इसे शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जाएगा। • 'नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति' में शिक्षा में जीडीपी के 6% निवेश का लक्ष्य रखा गया है। • 10+2 के पैटर्न को बदलकर 5+3+3+4 पैटर्न का सुझाव दिया गया है। • नवीन पैटर्न में स्कूली श

केशवानंद भारती केस एक परिचय

 केशवानंद भारती केस एक परिचय  (1)केशवानंद भारती केस की पृष्ठभूमि भारत में महत्वपूर्ण संवैधानिक और न्यायिक परिवर्तन के सूत्रधार केशवानंद भारती एक ऐसा नाम है जिससे संवैधानिक और न्यायिक इतिहास में रुचि रखने वाला हर एक व्यक्ति परिचित है। केशवानंद भारती जी ने केरल का शंकराचार्य कहा जाता था वह केरल के सबसे उत्तरी जिले काश रोड के ऐड नीर के एक मठ के महंत थे जो आदि गुरु शंकराचार्य से संबंधित है   इस मठ के  प्रधान होने के कारण उन्हें आधुनिक केरल का शंकराचार्य कहा जाता हैं । केशवानंद भारती ने महज 19 साल की उम्र में संयास ले लिया और 20 की उम्र में मठ के प्रधान की  जिम्मेदारी ली। दरअसल जिस मठ के केशवानंद भारती महंत बने उस मठ का करीब 1200 साल पुराना समृद्ध इतिहास है इस संभाग इतिहास के साथ इस मठ के पास कई एकड़ जमीन थी तत्कालीन समय में जब केरल सरकार ने भूमि सुधार आंदोलन की शुरुआत की तो इस भूमि सुधार के तहत सरकार ने मठ कि जमीन का भी अधिग्रहण कर लिया । केरल के मठ प्रमुख होने के नाते केसवानंद भारती ने 1970 में इस भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध केरल हाई कोर्ट में याचिका दायर की और अनु 26 का  हवाला देते हुए  मां

'संविधान के संरक्षक' केशवानंद भारती जी ने ली अंतिम सांस

   नमस्कार दोस्तों एक बार फिर से सकारात्मकता के प्रसारण के प्रयोजन से स्थापित एवं संचालित फाउंडेशन, सम्प्रभा फाउंडेशन के ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है 6 सितंबर 2020 को भारत ने 'संविधान के रक्षक', तेजस्वी साधु और महान व्यक्तित्व को खो दिया । जी हां 9 दिसंबर 1940 को भारत भूमि पर जन्म लेने वाले इस साधु का योगदान सदियों तक आदर के साथ याद किया जाएगा। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के नाम से दायर की गई याचिका पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 24 अप्रैल 1973 को  दिया गया निर्णय भविष्य में भारत के संविधान के प्रहरी के रूप में अपना अद्वितीय योगदान देता रहेगा तथा श्रीमान् भारती जी का स्मरण हमें करवाता रहेगा।  अब हम इस याचिका के मुख्य बिंदुओं तथा निर्णयों पर अपना ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करते हैं- 68 दिनों तक चलने वाली सुनवाई के अध्यक्ष तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री एस एम सिकरी जी थे। मामले की सुनवाई करने वाली इस बेंच में कुल 13 न्यायाधीश शामिल थे। जिनमें से 7 न्यायाधीश फैसले के पक्ष में थे।  आदरणीय भारती जी की यह याचिका मुख्य रूप से केरल में भूमिहीन नागरिकों को दी जाने वाली जमीन क

कोरोना काल में समाज में कुछ सकारात्मक प्रभाव

कोरोना महामारी पूरे विश्व के लिए अत्यंत भयावह और घातक सिद्ध हुई है , परन्तु जैसा कि सर्वविदित है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं , अंतर केवल नज़रिये का है।  इस कोरोना महामारी के समय हमें समाज में कुछ ऐसे सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले जो शायद सामान्य परिस्थितियों में सम्भव ना हो पाते और जो हमारे लिए अत्यंत अनुकरणीय हैं ।  उन्ही परिवर्तनों को दर्शाने का एक प्रयास है यह कविता -  कोरोना के काल में मिलती है कुछ सीख  सकारात्मक  बन के रहो मिलेगी तब ही जीत  कोरोना के काल में हुई अनोखी बात  रामायण जो बंद पड़ी हुई उसकी भी शुरुआत  बच्चे ,बूढ़े और जवान करते सब ही बात  रामायण ने कर दिया सब अपनों को साथ  बच्चों में भी संस्कार की हुई पुनः बरसात  घरवालों को कहने लगे मातृ पितृ और भ्रातृ  महाभारत भी खूब चली रामायण के साथ  फिर से हमने देख ली पासों की  शह मात  देकर ज्ञान फिर गीता का कृष्ण ने रख दी बात  कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु तात  धीरे धीरे चल पड़ा कोरोना का खेल  पर घर बैठे मिल गए सबके दिल के मेल  पंछी सब भी ले रहे अब सुकून की सांस  पर्यावरण में है नहीं धुएं की बरसात  वायुमंडल भी शुद्ध हुआ कोरोना

महिला समानता एवं सशक्तिकरण में महिलाओं का सक्रिय होना अनिवार्य

  शीर्षक :- महिला समानता और सशक्तिकरण में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण 26 अगस्त महिला समानता दिवस,8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस इत्यादि तिथियों पर हमारा समाज महिलाओं की सुरक्षा एवं समानता के लिए मानो अटल प्रतिज्ञा करता है लेकिन जब इन तिथियों के कुछ पश्चात ही कोई दरिंदा फिर से किसी की मां और बहन के साथ बदसलूकी करता है तो समाज के ठेकेदारों की संवेदनाएं मृत प्रायः सी नजर आती हैं। अब मसला यह है कि महिला समानता एवं सशक्तिकरण के क्षेत्र में घर की नारियां कैसे नायिका साबित हो सकती हैं इस पर मैं अपने कुछ विचार रखना चाहूंगा इन बिंदुओं का तात्पर्य यह नहीं है कि महिलाओं की दुर्दशा के लिए कोई महिला जिम्मेदार है अपितु इनका भाव यह है कि यदि महिलाएं पहल करें तो नारी सशक्तिकरण त्वरित गति से हो सकता है यदि बचपन से ही एक माता अपनी बेटी को शारीरिक रूप से दुर्बल होने की रूढ़िगत शिक्षा देने की बजाय उसे झांसी की रानी और हिमा दास तथा कालीबाई जैसी प्रेरणास्रोत रही महिलाओं की कहानी सुनाएं तो शायद उसका मानसिक विकास अपेक्षाकृत बेहतर हो पाएगा यदि परिवार में एक सेब के दो टुकड़े करके मां दोनों बच्चों को बराबर द

The basic principles of new education policy 2020

आशा का संचार करते नई शिक्षा नीति के आधारभूत सिद्धांत किसी भी योजना की सफलता के निर्धारण में उसके आधारभूत सिद्धांतों का अद्वितीय स्थान होता है। नई शिक्षा नीति के आधारभूत सिद्धांतों के संश्लेषित रूप के अनुसार " यह विद्यार्थियों में भारतीयता के बीजों के अंकुरण को मध्यनजर रखते हुए उन्हें नैतिक मूल्यों तथा मौलिक कर्त्तव्यों की शिक्षा प्रदान करना चाहती है।" साथ ही यह शिक्षा नीति बालक - बालिकाओं के सर्वांगीण विकास के साथ - साथ शिक्षकों के समुचित प्रशिक्षण एवं अवधारणात्मक विकास के लिए प्रतिबद्ध है।   देश की बहुभाषिकता एवं संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के मूल्यों से प्रेरित यह शिक्षा नीति समावेशी शिक्षा एवं शिक्षा की सार्वभौमिकता हेतु भी उचित प्रावधान करती है। शिक्षा में शोध - गुणवत्ता को बढ़ावा देना तथा जीवन - कौशलों के विकास के साथ - साथ शिक्षा में लचीलापन एवं सहसंबंधों की स्थापना भी इस शिक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य है । नई शिक्षा न