मैं ही आदिवासी हूं, आदिवासी समाज की संस्कृति और परंपराओं पर कविता
जोहार दोस्तों स्वागत है आप सभी का एक बार फिर से सकारात्मकता की दुनिया, सम्प्रभा में दोस्तों क्या आप भी चाहते हैं कि आप अपने जीवन में सोशल मीडिया पर जो भी देखें वह सकारात्मक ही देखें जिससे आपको अपने लक्ष्य प्राप्ति में सहायता और सहूलियत रहे मुझे लगता है आप कहेंगे हां तो फिर सब्सक्राइब कर दीजिए हमारे ब्लॉग को और यूट्यूब पर देखिए हमारे शानदार सकारात्मकता से पूर्ण वीडियो (@SAMPRABHA) मित्रों अभी हम देश के आदिवासियों के बारे में एक महत्वपूर्ण और हृदय को प्रसन्न करने वाली कविता पढ़ने जा रहे हैं तो बने रहिए हमारे साथ और आपका सहयोग देते रहिए दोस्तों मुझे लगता है कि एक आदिवासी निम्न प्रकार अपने बारे में कुछ सत्य धारणाएं रखता होगा- धरती मां का बेटा हूं मैं, मैं ही आदिवासी हूं कभी भील हूं कभी हूं सांसी, कभी मैं गारो खासी हूं एकलव्य सी जिज्ञासा हूं, काली बाई सा तेज हूं कुछ लिखा गया कुछ रह गया मैं इतिहास का वह पेज हूं अन्याय का बदला लेता हूं मैं भगवन् बिरसा की संतान जोहार बोल कर कहता हूं मैं, मेरे माता-पिता और धरती महान संस्कृति की नदियां हैं और परंपरा की झील है वीरता का अप्रतिम उदाहरण नानक औ
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