कहानियां जो आपकी जिंदगी बदल दे, आपकी जीत निश्चित है मोटिवेशन

नमस्कार दोस्तों
एक बार फिर से आप सभी का स्वागत है सकारात्मकता के प्रसारण के लिए स्थापित एवं संचालित समूह सम्प्रभा के ब्लॉग पर।
आज हम बात करने जा रहे हैं दुनिया की कुछ ऐसे विशेष व्यक्तियों के बारे में जिन्होंने अपने सकारात्मक सोच और अदम्य साहस से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

यह कहानियां हमें बताती है कि जीवन में निश्चित लक्ष्य और सकारात्मक ऊर्जा हो तो दुनिया जीतना असंभव काम नहीं है।
1)Karoly Takacs: एक हाथ कट गया लेकिन जीत का जज्बा थमा नहीं...
21 जनवरी 1910 को हंगरी में जन्में Karoly Tacacs को पिस्टल शूटिंग का शौक तो था ही साथ ही वे अपने देश की सेना में भी कार्यरत थे इसी दौरान उनके हाथ में एक ग्रेनेड फट गया और इससे उनका

दाहिना हाथ जिससे वह शूटिंग करते थे वह भी सदा सदा के लिए चला गया यहां उनकी जगह कोई सामान्य आदमी होता तो सिर पर आई समस्या को देखकर विलाप करने लगता या अपनेे भाग्य को कोसने लगता लेकिन उन्होंने बिना समय व्यर्थ किए अपने बाएं हाथ से शूटिंग का अभ्यास शुरू कर दिया क्योंकि उनका लक्ष्य हर हाल में ओलंपिक्स में जीतना था और आखिर 1948 और 1952 केे ओलंपिक्स में उन्होंनेेे यह कर दिखाया दोस्तों यह उनकी सकारात्मकता ही तो थी कि उन्होंने अपने मुख्य हाथ जिससेे अभ्यास किया थाा उसे खोने के बाद भी धैर्य नहीं खोया इसी कारण सफलता की प्राप्ति हुई।
           तभी तो कहा जाता है कि यदि मान लिया तो हार और ठान लिया तो जीत।
2) एपीजे अब्दुल कलाम: अखबार बेचने से लेकर राष्ट्रपति भवन तक का सफर
15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्में भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति श्री अबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम साहब का सफर संघर्ष और सकारात्मकता की अनुपम मिसाल है। दरअसल ना तो कभी समस्याओं ने स्वप्न में आकर उनसे यह कहा होगा कि हम आपके रास्ते में बाधा नहीं डालेंगे और ना ही उनकी प्रगति को रोकने वाले असामाजिक तत्वों की कमी रही होगी लेकिन अपने मन की सकारात्मकता और स्पष्ट उद्देश्य ने उनको इस मुकाम तक पहुंचाया।
उनकी प्रारंभिक आर्थिक स्थिति के हिसाब से राष्ट्रपति भवन पहुंचना तो दूर दो जून की रोटी नसीब होना भी मुश्किल कार्य था जिसके लिए उन्हें अखबार बेचने का कार्य भी करना पड़ा लेकिन वे हाथों की लकीरों के भरोसे नहीं बैठे और खुली आंखों से सपने देख कर देश को ना केवल तकनीकी रूप से सक्षम बनाया अपितु देश के प्रथम नागरिक बनकर इस पद को भी शोभायमान किया।
कच्ची बस्ती से लेकर राष्ट्रपति भवन तक की उनकी यात्रा हर एक बुजदिल इंसान में नवीन ऊर्जा का संचार करने के लिए पर्याप्त है। अपने संघर्ष और सकारात्मकता के कारण कि आज उन्हें देश के आदर्श पुरुष के रूप में जाना जाता है, वे इतने सकारात्मक इंसान थे कि देश के महान वैज्ञानिक होने के बावजूद भी उन्होंने कहा है कि आध्यात्मिकता बिना विकास संभव नहीं है और उनकी आध्यात्मिकता संकुचित नहीं थी उनके लिए धर्म का अर्थ मानवता और देश सेवा था
3) माइकल फेल्प्स: सबसे ज्यादा रिकॉर्ड तोड़ने का रिकॉर्ड बनाने वाले इंसान
 30 जून 1985 को अमेरिका में जन्में इस इंसान की अपनी जीत केे प्रति प्रतिबद्धता देखतेे ही बनती है, दरअसल शुरुआत में उनको पानी से डर लगता था लेकिन इस डर पर विजय पाकर उन्होंनेे अपने विजय अभियान की शुरुआत सन् 2000 में सिडनी ओलंपिक में क्वालिफाई करके अमेरिकी इतिहास के सबसेे युवा तैराक बनने के साथ ही कर दी थी। हालांकि उन्हें यहां सफलता हाथ नहीं लगी लेकिन कहतेे है ना कि कमजोर तब रुकते हैं जब वेेेे थक जाते हैं और विजेता तब रुकते हैं जब वे जीत जातेे हैं।
इसी तरह का आत्मविश्वास और सकारात्मकता ही उनके अंदर थी यही कारण था कि सन् 2004, 2008, 2012 और 2016 के ओलंपिक में कुल मिलाकर उन्होंने अब तक 28 पदक जीत लिए हैं जिनमें से 23 स्वर्ण पदक है। यहां हमें यह उल्लेख करना नहीं भूलना चाहिए कि ओलंपिक के इतिहास में मेडल जीतने वाले प्रथम व एकमात्र खिलाड़ी हैं। विचित्र बात यह है कि सन् 2004 के ओलंपिक से 2 साल बाद उनके दाहिने हाथ की कलाई फैक्चर हो गई थी डॉक्टर ने कहा था कि वह इसका उपयोग अब पहले की तरह नहीं कर पाएंगे फिर भी उन्होंने समस्या को अवरोध नहीं बनने दिया अपितु अपनी प्रगति जारी रखें, विश्व में ऐसे सकारात्मक उर्जा वाले इंसान विरले ही पैदा होते हैं।
4) वीर जसवंत सिंह रावत: अतुल्य वीरता की परिभाषा
19 अगस्त 1941 को देवभूमि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में वितरित किए इस साक्षात् देव समान वीर की कहानी शिरा और धमनी में रक्त का वेग बढ़ाने वाली है, यह बात 17 नवंबर 1962 की है जब चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश में भारत पर आक्रमण बोल दिया यह उनका चौथा और अंतिम आक्रमण था, चीन के बढ़ते हुए दबदबे को देखकर गढ़वाल यूनिट के सैनिकों को वहां से बुला लिया गया था लेकिन वीर जसवंत सिंह और उनके दो साथी लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल गुसाईं वहां से नहीं लौटे थे, चीनी सेना के आक्रमण के समय अपने दो साथियों को तो वीर जसवंत सिंह ने वापस भेज दिया और पलायन की बजाए अकेले की चीन की चमगादड़ चाल का मुंहतोड़ जवाब देने की ठानी।
इस प्रकार गोलीबारी कर रहे थे कि चीनी सेना को 3 दिन तक यह भ्रम रहा यहां कोई अकेला सैनिक नहीं अपितु सेना की पूरी टुकड़ी लड़ रही है दोस्तों फिर क्या था भारत मां के इस लाल ने अकेले ही 3 दिन में चीन के 300 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया उनकी यह वीरता अदम्य साहस और सकारात्मकता के सम्मिश्रण की कहानी है वरना कायर लोग तो मंडराते संकट को देखकर शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर छुपाते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इस वीर की वीरता अविस्मरणीय बनाने के लिए आज भी इनको समय-समय पर प्रमोशन दिया जाता है और इनके परिवार को इनका वेतन भी मिलता है साथ ही उनके कपड़ों पर रोजाना प्रेस की जाती है।
RAJENDRA MINA
संदर्भ सूची:-
  1. www.patrika.com
  2. www.aajtak.in
  3. www.ichowk.in
  4. www.bhaskar.com
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जय हिंद जय भारत



Comments

  1. अलग -अलग कहानियों का एक ही सार हैं-मजबूती,अपने काम के प्रति कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार के साथ -साथ सकारात्मक सोच।
    शानदार कार्य भाई 💞🥰🇮🇳

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