भारतीय बैंकिंग क्षेत्र: चुनौतियाँ एवं अवसर

बैंक

 बैंक उस वित्तीय संस्था को कहते हैं जो जनता की जमाएँ स्वीकार करता है और जनता को ऋण देने का काम करता है। लोग अपनी-अपनी बचतों को सुरक्षा की दृष्टि से अथवा ब्याज कमाने हेतु इन संस्थाओं में जमा करते हैं और आवश्यकतानुसार समय-समय पर निकालते रहते हैं। बैंक इस प्रकार जमा से प्राप्त राशि को व्यापारियों एवं व्यवसायियों को ऋण देकर ब्याज कमाते हैं।

आर्थिक आयोजन के वर्तमान युग में कृषि उद्योग एवं व्यापार के विकास के लिए बैंक एवं बैंकिंग व्यवस्था एक अनिवार्य आवश्यकता मानी जाती है। राशि जमा रखने तथा ऋण प्रदान करने के अतिरिक्त बैंक अन्य काम भी करते हैं। जैसे सुरक्षा के लिए लोगों से उनके आभूषण एवं बहुमूल्य वस्तुएँ जमा रखना, अपने ग्राहकों के लिए उनके चैक्स का संग्रहण करना, व्यापारिक बिलों की कटौती करना, एजेंसी का काम करना। अतः बैंक केवल मुद्रा  लेन-देन ही नहीं करते अपितु साख का व्यवहार भी करते हैं। इसलिए बैंक को साख का सृजनकर्ता भी कहा जाता है।

भारतीय बैंकिंग कंपनी कानून 1949 के अनुसार - "ऋण देना और विनियोग के लिए सामान्य जनता से राशि जमा करना तथा चैकों, ड्राफ्टों तथा आदेशों द्वारा माँगने पर उस राशि का भुगतान करना बैंकिंग व्यवसाय कहलाता है और इस व्यवसाय को करने वाली संस्था बैंक कहलाती है।"

भारतीय बैंकिंग: चुनाैतियाँ और अवसर



1. तीव्र प्रतिस्पर्धा

बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ती बैंकिंग संस्थाओं के कारण तीव्र प्रतिस्पर्धा की चुनौती उत्पन्न हो रही है। रिजर्व बैंक द्वारा पेमेंट बैंक को हरी झंडी दिखा दी गई है। जिससे अब जल्द ही बैंकिंग सेक्टर में प्रतिस्पर्धा बड़ा वातावरण बनने की संभावना प्रबल हो गई है। यह प्रतिस्पर्धा जहाँ बैंकों पर सेवा गुणवत्ता एवं सुविधाओं काे लेकर दबाव बनाएगी, वहीं छाेटे मझाेले ग्राहकाें काे लाइन में लग कर बैंकिंग सेवाएँ प्राप्त करने से राहत मिलेगी। सरकारी क्षेत्र के बैंकर्स  मानते हैं कि सेवा गुणवत्ता एवं ग्राहकों के आधार काे लेकर प्रतिस्पर्धा तो अभी भी निजी क्षेत्र की बैंकों से चल रही है तथा अर्थव्यवस्था में वित्तीय संस्थाओं के प्रवेश के कारण बैंकों की प्रतिस्पर्धा उन संस्थाओं से भी बढ़ी है। जो ग्राहकों को लाने उपलब्ध कराते हैं। बैंकों की प्रतिस्पर्धा आपस में ही नहीं ”बल्कि फाइनेन्सियल कंपनियों के साथ भी है। जो बैंकिंग क्षेत्र के लिए एक चुनाैतीपूर्ण  विषय है।

2. गाेपनीयता और सुरक्षा

ई-बैंकिंग क्षेत्र में कई ऐसे तथ्य हैं। जिनकी वजह से सुरक्षा संकट की स्थिति पैदा हो सकती है। इसके साथ ही बैंकिंग क्षेत्र में भ्रष्टाचार के कारण उच्च पद पर नियुक्त अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेकर बैंक खातों संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की जाती है और ई-बैंकिंग के कारण ग्राहकों के खाताें को हैक कर धन की चोरी के कई  मामले सामने आये हैं। बैंकों के लिए गोपनीयता और सुरक्षा की समस्या चुनौती बनकर उभर रही है।

3. निजीकरण की चुनौती 

RBI के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने सुझाव दिया था कि केन्द्र को सरकारी बैंकाें के निजीकरण पर विचार करना चाहिए। उनका यह सुझाव सरकार के एक मत के कारण था सरकार का मत है कि "सरकार बैंकाें के पूँजीकरण के लिए एक सीमा से अधिक पैसा नहीं दे सकती है क्योंकि इससे राजकोषीय घाटे पर असर पड़ेगा।"
आचार्य ने सरकार के बयान का जवाब देते हुए कहा कि अगर उसके लिए राजकाेषीय घाटे की अड़चन है तो उसे सरकारी बैंकों के निजीकरण पर विचार करना चाहिए। अगर सरकारी बैंकों का निजीकरण हो जाएगा तो बैंकों व बैंकों के कर्मचारियों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

4. राजनीतिक हस्तक्षेप

बैंकिंग क्षेत्रों में सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के खिलाफ विपक्षी राजनैतिक पार्टियों प्रदर्शन तथा सरकार द्वारा बैंकिंग क्षेत्र में हस्तक्षेप के कारण बैंकिंग क्षेत्र को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हाल के वर्षों में सरकार के निर्णय से हुई नोटबंदी का भी बैंकों काे हर्जाना भुगतना पड़ता है। अतः बैंकिंग क्षेत्र में राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

5. NPA (Non-performing Assets)

एनपीए - का मतलब गैर निष्पादिकीय सम्पत्ति होता है। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार किसी बैंक द्वारा दिए गए टर्म लाने पर पिछले 90 दिनों के लिए यदि ब्याज आदि नहीं दिया जाए तो ऋण NPA हो जाता है। बैंक इस एनपीए को चार तरह से वर्गीकृत करता है। ये चार मुख्य वर्ग हैं - स्टैण्डर्ड, सब स्टैण्डर्ड, डाउटफुल और लाॅस। इन चारों का वर्गीकरण इस आधार होता है कि कोई संपत्ति कितने समय तक नाॅन परर्फोमिंग एसेट के रूप मेन रही है।
NPA एक ऐसा शब्द है जो भारत में बहुत ही ज्यादा चर्चित है क्योंकि पहले ललित मोदी, फिर विजय माल्या और अब नीरव मोदी और ऊपर से जब इकनोमिक टाॅपिक पर बात होती है तो सबसे ज्यादा यही टाॅपिक होता है कि भारतीय बैंकों में  NPA बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।

6. धाेखाधड़ी/कपट की चुनौतियाँ - 

बैंक मुद्रा के व्यापारी हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति काे मुद्रा की सख्त आवश्यकता रहती है। बेईमान व्यक्ति सदैव मुद्रा की धोखाधड़ी द्वारा जल्दी ही धनवान बनने का मौका ढूँढते हैं। अगर मौका मिल जाता है तो चूकते नहीं हैं। धोखाधड़ी के मौकाें के क्षेत्र सामान्यतः इस प्रकार हैं - 
  • बैंक ड्राफ्ट जारी करने तथा चुराने से धोखाधड़ी
  • चालू खातों एवं बचत खातों में धोखाधड़ी
  • खाते में निर्धारित सीमा से अधिक भुगतान
  • जाली हस्ताक्षरों से भुगतान
  • चैक बुक या चैकों की चोरी
  • निष्क्रिय खातों में धोखाधड़ी
  • विभिन्न सहायता और रोजगार योजनाओं के अन्तर्गत ऋणों में धोखाधड़ी
  • चैकों एवं विपत्रों की वसूली में धोखाधड़ी
  • समाशोधन हेतु प्राप्त चैक्स/ड्राफ्टों में धोखाधड़ी
  • नकद कोषों के विभाग में धोखाधड़ी

7. Online बैंकिंग संबंधी चुनाैती 

इंटरनेट बैंकिंग ने बैंकिंग उद्योग में एक वृहद् परिवर्तन ला दिया है और बैंकिंग संबंधों पर इसका विस्तृत प्रभाव पड़ा है। भारतीय बैंक Online Banking   उपलब्ध करवाने में अंतरराष्ट्रीय बैंकाें से अभी काफी पीछे है। यह पर्याप्त अधोसंरचना या पर्याप्त संख्या में Users  के बिना संभव नहीं है। अनुभव यह बताता है कि Net पर किया जाने वाला लेन-देन सीमित है। Online Banking की कुछ कठिनाईयाँ इस प्रकार हैं -
  • E-Banking में सुरक्षा के कई  मापदण्ड हैं परन्तु उचित प्राधिकरण द्वारा प्रमाणित नहीं हैं।
  • प्राप्त संचार बैंक विडथ आवश्यकतानुसार है।
  • अधिकतम बैंकों में बिजली पूर्ति  में रूकावट आती है जबकि ऐसी सेवाओं के लिए निरन्तर बिजली पूर्ति की आवश्यकता होती है।
  • ऐसी सेवाओं के लिए विवरण एक तरफा होते हैं अथवा बैंक इससे  supremacy ग्राहकों में आत्म विश्वास नहीं आता है।
  • Internet में भौगोलिक सीमाएँ नहीं होतीं हैं। कम्प्यूटर संबंधित अपराध cyber crimes  पर नियंत्रण करना कठिन होता है। पर्याप्त  Cyber Laws की बहुत आवश्यकता है।

8. लिक्विडिटी बाजार जोखिम

बाजार में लिक्विडिटी की कमी की चिंताएँ बढ़ती जा रही हैं। बाजार में लिक्विडिटी की कमी के कारण भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो रही हैं की वह बाजार में लिक्विडिटी की कितनी मात्रा उपलब्ध रखे। बाजार से लिक्विडिटी की मात्रा सुनिश्चित करना बैंकाें के लिए आसान नहीं है। अगर बैंक बाजार में जरूरत से ज्यादा लिक्विडिटी की मात्रा उपलबध करवाते हैं तो भी बैंकाें के लिए एक समस्या का विषय है। कम लिक्विडिटी रखते हैं। तो भी बैंकों के लिए एक समस्या है अर्थात् लिक्विडिटी बाजार जोखिम बैंकों के लिए एक चुनौतीपूर्ण विषय है।

9. अनहेज्ड फोरेक्स जोखिम 

विदेशी मुद्रा बाजार में जबरदस्त उथलपुथल विदेशों से भारी मात्रा में ऋण लेने वाली भारतीय कंपनियों की बहियों पर बड़ा दबाव डालने की क्षमता रखती है। इस दबाव से उनकी विदेशी मुद्रा देयताओं की चुकौती तो प्रभावित होती ही है लेकिन साथ ही घरेलू  ऋणदाताओं का ऋण चुकाने की उनकी क्षमता भी बाधित होती है। यही वह वजह है जिसके कारण रिजर्व बैंक काॅर्पाेरेटों को पर्याप्त जोखिम बचाव के बिना डाॅलर में ऋणों को बढ़ाने की बढ़ती प्रवृति पर रोक लगाने का समर्थन करता रहा है।

10. जोखिम प्रबंधन 

बैंकिंग व्यवसाय में जोखिम से बचना असंभव है तथा इस कारण एक सक्षम बैंक के लिए जोखिम प्रबंधन फ्रेम-वर्क अत्यंत जरूरी है। जोखिम प्रबंधन का लक्ष्य है- ”प्रभावी रूप से जोखिम वहन, प्रतिफल ट्रेड ऑफ में संतुलन बनाए रखना जिसका तात्पर्य है - "दिए गए जोखिम के लिए अधिकतम प्रतिफल" तथा "दिए गए प्रतिफल के लिए न्यूनतम जोखिम"। किसी बैंक की जाेि खम वहन करने की क्षमता के निर्धारण की जिम्मेदारी उसके बोर्ड तथा शीर्ष प्रबंधन की होती है तथा यह अपनी जिम्मेदारी को निभाने में असफल होते हैं। जिसके कारण बैंकाें काे चुनौती का सामना करना पड़ता है।

बैंकिंग क्षेत्र के सुनहरे अवसर


1. आर्थिक विकास दर में वृद्धि

भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्त वृहद् अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों के कारण व्यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्यों में से एक है। वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत काे आजाद हुए 71 साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में जबरदस्त बदलाव आया है।औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था तथा औद्याेगिक विकास के कारण भारत में बैंकाें की मांग में वृद्धि हुई  है। बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ-साथ बैंकिंग क्षेत्र के लिए सुनहरे अवसरों का उदय हुआ है।

2. ग्राहकों की उधारी दर में वृद्धि 

बढ़ती अर्थव्यवस्था एवं बढ़ती ज़रूरतों के कारण बैंकों के ग्राहकों में भी वृद्धि हुई है। भारत में बढत़ी जनसंख्या के कारण ज़रूरतों में भी वृद्धि हुई है। इन जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंकों से उधार लेने वाले ग्राहकों की संख्या में वृद्धि हुई है। बैंक ग्राहकों द्वारा अपनी मूलभूत आवश्यकताओं काे पूरा करने के लिए बैंकाें से लाने के रूप में उधारी ली जाती है। बैंकों द्वारा ग्राहकों को अधिक उधारी दी जाने से बैंकों को ब्याज के रूप में लाभ प्राप्त होते है।

3. बैंकों की शाखाओं में वृद्धि 

बढत़ी हुई जनसंख्या के कारण और सरकारी बैंकों की अपर्याप्त सुविधाओं के कारण निजी क्षेत्र के बैंकाें की शाखाओं में वृद्धि का अवसर उत्पन्न हुआ है। बैंकाें की सीमित संख्या के कारण बैंक ग्राहकों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था और बैंकों की सीमित संख्या के कारण बैंक ग्राहकों को विस्तृत सुविधाएँ प्रदान करने में लापरवाही करते थे। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में विदेशी बैंकों के आगमन तथा बैंकों की संख्या में वृद्धि के कारण विद्यमान बैंकों की सुविधाओं में भी विस्तार होगा।

4. सरकार द्वारा निर्धा रित ऋण दरों में कमी

भारतीय सरकार द्वारा निर्धारित ब्याज दरों में कमी के कारण आम जन की पहुँच बैंकों तक बढ़ी है। ब्याज दरों में कमी के कारण ग्राहक गैर बैंकिंग संस्थाओं से ऋण देने के बजाए बैंकों से ऋण लेते हैं। जिससे बैंक ग्राहकाें में वृद्धि हुई है। सरकार द्वारा "किसान क्रेडिट कार्ड स्कीम के तहत" किसानों काे सस्ते ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने से किसान वर्ग भी बैंकाें से जुड़ गया है तथा अपनी बचतों को बैंकों में जमा करवाता है। जिससे बैंकाें के लिए एक नए अवसर का निर्माण हुआ है तथा वाहन खरीदने के लिए ऋण और अन्य सम्पत्तियों के क्रय के लिए ऋण की दरों में कमी के कारण सामान्य लोग भी बैंकाें से जुड़ने लगे हैं।

5. मुद्रा आपूर्ति  में वृद्धि

सरकार द्वारा सरकारी बैंकों में समय-समय पर रुपये की आपूर्ति  में वृद्धि करने के कारण बैंकों के पास इस मुद्रा आपूर्ति से लाभ कमाने का सुनहरा अवसर उपलब्ध हुआ है। मोदी सरकार ने अगस्त 2015 में 700 अरब रूपये और अक्टबू र, 2017 में 2.12 लाख करोड़ रूपये सरकारी बैंकों में डालने की घोषणा की थी जिससे रूपये की आपूर्ति में वृद्धि हुई है। मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि के कारण सरकारी बैंकों काे लाभ अर्जित करने का अवसर मिला है।

6. रोकड़ विभाग का मशीनीकरण

बढत़ी तकनीक के युग में बैंकों के रोकड़ विभाग का मशीनीकरण हुआ है। बैंकों के रोकड़ विभाग में पैकेट बनाने, बंडल बनाने आदि कार्यों के लिए भी मशीनों की आवश्यकता है। साथ ही नोट की छँटाई करने, जाली नोटों की पहचान करने तथा नोटों की गिनती करने को मशीनों का बैंकों में आगमन हुआ है जिससे बैंक ग्राहकों में संतुष्टि बढ़ी है तथा बैंकों में जाली नोटों के आगमन पर भी रोक लगी है।

7. बैंकाें के एकीकरण को प्राेत्साहन 

सरकार ने सर्वप्रथम 14 प्रमुख बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लिए 25 जुलाई, 1969 को बैंकिंग कम्पनीज (उपक्रम का अधिग्रहण एवं हस्तान्तरण) विधेयक लोक सभा में प्रस्तुत किया जो कि 4 अगस्त, 1969 को पास कर दिया गया। 8 अगस्त को राज्य सभा ने भी उसे पारित कर दिया तथा 9 अगस्त काे कार्यवाहक राष्ट्रपति के इस पर हस्ताक्षर होकर यह बैंकिंग कम्पनीज (अधिग्रहण एवं हस्तान्तरण) अधिनियम, 1969 बन गया। बैंकों के एकीकरण के कारण बैंकों की पूंजी एवं कार्य क्षेत्र में वृद्धि हुई है तथा बैंकों को एकीकृत होकर कार्य करने एवं लाभ अर्जित करने का सुनहरा अवसर मिला है।

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में आ रही चुनौतियाें काे दूर करने के सुझाव

1. बैंकाें द्वारा संग्रणार्थ बिलाें में सावधानी - 

बैंकाें काे ग्राहकाें के रेखांकित चैकों एवं ड्राफ्ट के संग्रहण में ताे धारा 131 के अन्तर्गत संरक्षण प्राप्त हैं। किंतु ग्राहकों द्वारा जो बिल संग्रहणो के लिए दिए जाते हैं। उनके संग्रहण में बैंकों को कोई संरक्षण प्राप्त नहीं है। इसलिए बैंकों को उन बिलों के संग्रहण में बड़ी सावधानी रखने की जरूरत है। मुख्य सावधानियाँ इस प्रकार हैं -
  • ग्राहक के अधिकार की जाँच - बिलों  के संग्रहण एवं भुगतान से पूर्व बैंक को ग्राहक के बिल संबंधी अधिकार की पर्याप्त जाँच करनी चाहिए।
  • स्वीकृति हेतु बिल प्रस्तुत करना - यदि ग्राहक के ”संग्रहणार्थ बिल“ पर देनदार की स्वीकृति नहीं है तो बैंक को ऐसे बिल को यथाशीघ्र देनदार की स्वीकृति के लिए देनदार के सम्मुख प्रस्तुत करना चाहिए। 
  • बैंक को बिल की देय तिथि पर देनदार के सम्मुख भुगतान के लिए प्रस्तुत करना चाहिए।
  • प्रस्तुतीकरण में बैंक की त्रुटि - अगर बैंक ग्राहकाें के संग्राहणार्थ बिलाें काे देय तिथि पर भुगतान के लिए प्रस्तुतीकरण में कोई गलती या लापरवाही नहीं करनी चाहिए।
  • बिल के अनादरण की सूचना ग्राहक को तत्काल दे देनी चाहिए।

2. बैंकाें में धाेखाधड़ी की रोकथाम

बैंकों में धोखाधड़ी की रोकथाम के लिए कई कदम उठाये जाने चाहिए। इस दिशा में निम्न कदम सतर्कता एवं पर्याप्त सावधानी से क्रियान्वित करने पर धोखाधड़ी की रोकथाम में मदद दे सकते हैं। ड्राफ्ट संबंधी धोखाधड़ी की रोकथाम के लिए प्रायः निम्न कदम उठाये जा सकते हैं-
  • ड्राफ्ट बुक्स को किसी विश्वसनीय अधिकारी के संरक्षण में ताला-चाबी में रखना चाहिये ताकि चोरी की संभावनाएँ कम हों।
  • ड्राफ्ट के भुगतान में ड्राफ्ट पर अधिकारी के हस्ताक्षरों की पूरी छानबीन कर आश्वस्त होने पर ही भुगतान करना चाहिये।
  • बड़ी राशि के ड्राफ्ट जारी करते समय उस पर कम से कम दो अधिकारियों के हस्ताक्षर आवश्यक होने चाहिए।
बचत खाताें एवं चालू खातों में धाेखाधड़ी की राेकथाम के उपाय संक्षेप में इस प्रकार हैं-
  • चैक बुकें तथा खुले चैक-पत्र विश्वसनीय अधिकारी के संरक्षण में रखे जाने चाहिए।
  • जिन खातों में लम्बे समय से लेन-देन नहीं हो रहा हो इन्हें निष्क्रिय खातों में अंतरित करना सुरक्षित माना जाता है।

चैकों एवं विपत्रों की वसूली में धोखाधड़ी की रोकथाम के निम्न सुझाव हैं-
  • वसूली की सूचना रजिस्टर्ड डाक द्वारा आनी चाहिए तथा उस पर अधिकारी के हस्ताक्षर सावधानीपूर्वक जाँच की जानी चाहिए।
  • बड़ी राशि की वसूली की सूचना तुरन्त भेजी जानी चाहिए।

3. निजीकरण की चुनाैती को दूर करने के उपाय

भारतीय बैंकों को निजीकरण की समस्या से बचने के लिए सरकारी बैंकों के कर्मचारियों द्वारा किए जा रहे कार्य का निरीक्षण समय-समय पर करते रहना चाहिए तथा सरकारी बैंकों के कर्मचारियों में लापरवाही, आलस्य काे दूर करने के प्रयास करने चाहिए।

4. राजनैतिक हस्तक्षेप संबंधी उपाय

सरकारी बैंकों के प्रबंधक तथा उच्च पद पर नियुक्त व्यक्तियों की नियुक्ति सरकार द्वारा न होकर उनके कार्य क्षमता व योग्यता के आधार पर होनी चाहिए। सरकार द्वारा बैंकों से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णय में सरकार के साथ-साथ बैंकों की भागीदारी होनी चाहिए।

5. NPA संबंधी सुझाव 

बैंकाें में NPA कम करने के लिए बैंकों को निम्नलिखित प्रावधान करने चाहिए-
  • ग्राहकाें के खातों की समय-समय पर जाँच करते रहना। जिससे काेई भी Account NPA की स्थिति में हो तो उस पर तुरन्त कार्यवाही की जाये। 
  • NPA की श्रेणी में आने वाले ग्राहकों से राशि वसूल करने हेतु उनकाे प्रलोभन देना चाहिए।
  • बैंकाें द्वारा ग्राहकाें काे बड़ी राशि के लोन एक मुश्त न देकर किश्तों में देना चाहिए।

6. तीव्र प्रतिस्पर्धा  संबंधी सुझाव  

भारतीय बैंकों काे तीव्र प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए कुछ प्रावधानाें पर ध्यान देना आवश्यक है।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर की सेवाएँ उपलब्ध कराना,
  • तकनीक को विकसित करना,
  • मूलभूत सुविधाओं में वृद्धि करना।

7. गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी सुझाव 

गोपनीयता को बनाए रखने संबंधी सुझाव निम्न हैं-
  • Online बैंकिंग में OTP के उपयोग में वृद्धि करने की आवश्यकता है।
  • Account हैक की समस्या से बचने के लिए बैंकों की महत्वपूर्ण वेबसाइट्स को एक वेवसाइट से जोड़ना तथा समय-समय पर उसका निरीक्षण करना। 
  • ग्राहकों द्वारा अपने खातों के पासवर्ड महीने में कम से कम दो बार परिवर्तित करना चाहिए।

8. बैंकिंग संबंधी सुझाव 

  • ई-बैंकिंग के लिए अधिकारिक वेबसाइट्स का ही उपयोग हो।
  • ई-बैंकिंग/Online पेमेंट के लिए बहुत से एप्स या साइटों के स्थान पर सुरखित एप्स एवं साइटों का प्रयोग हो
  • नेट बैंकिंग के लिए इंटरनेट कैफे और सांझे कम्प्यूटर का प्रयोग इस सुविधा हेतु कम करें।
  • मोबाइल बैंकिंग के लिए ग्राहकों को अपने मोबाइल में ”पावर ऑन पासवर्ड डाल देना चाहिए जिससे उनके मोबाइल को कोई  नहीं खोल सके।

9. जोखिम प्रबंधन से संबंधित सुझाव 

  • बैंक के सम्मुख आने वाली प्रत्येक प्रकार के जोखिम के लिए जोखिम सीमा तथा बैंक की समग्र जोखिम वहन करने की क्षमता निर्धारित कर जोखिम का मापन या निगरानी रखनी चाहिए।
  • बैंक के शीर्ष प्रबंधन को बाजार के बदलते समीकरणों तथा विनियमन दिशा निर्देशों को ध्यान में रखते हुए एक प्रभावी जोखिम प्रबंधन फ्रेमवर्क लागू करने का प्रयास करना चाहिए।

लेखक एवं शोधकर्ता:

मोहन चौधरी

A National-level Award Wining Article by Mohan Choudhary

Comments

  1. Yukti Abha SherawatJanuary 5, 2021 at 8:59 PM

    ����

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  2. शानदार कार्य मोहन जी
    निरंतर प्रगतिशीलता की राह को थामें रखें ✍👌👍🥰

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  3. A great article by Mohan Ji on Banking sector

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