प्राचीन भारत के प्रमुख चार वैज्ञानिक और उनकी उपलब्धियां

 नमस्कार दोस्तों

एक बार फिर से स्वागत है आपका Samprabha ग्रुप  के ब्लॉग पर,  हमेशा की तरह जिज्ञासा को शांत करने वाले और  सकारात्मक तथा प्रेरणादायी विषयों पर चर्चा करने के क्रम में आज हम प्राचीन भारत के  प्रमुख चार वैज्ञानिकों के बारे में आपसे चर्चा करने जा रहे हैं

 1.आचार्य सुश्रुत:-

 भारत में  शल्य चिकित्सा का जनक माने जाने वाले आचार्य सुश्रुत का जन्म ऋषि विश्वामित्र के कुल में हुआ था। उनके द्वारा ईसा पूर्व छठी ईस्वी में चिकित्सा साहित्य में अब तक का सर्वाधिक प्रासंगिक ग्रंथ सुश्रुत संहिता लिखा गया इसमें प्राचीन भारतीय संस्कृति की चिकित्सा व्यवस्था तथा आचार्य सुश्रुत की शिक्षाओं का विस्तार से वर्णन मिलता है। शल्य शब्द का अर्थ होता है पीड़ा, अर्थात् शल्य चिकित्सा के अंतर्गत प्राचीन समय में होने वाले युद्ध में घायल सैनिकों को बाण आदि के द्वारा हुए जख्मो में होने वाली पीड़ा का मंत्रोच्चार आदि से निवारण शामिल था।  आचार्य सुश्रुत ने 125 से अधिक चिकित्सा उपकरणों का निर्माण किया था तथा वह 300 से अधिक ऑपरेशन विधियों का ज्ञान रखते थे। 

वे कॉस्मेटिक सर्जरी, मोतियाबिंद के ऑपरेशन तथा स्त्री रोग व मनोरोग के विशेषज्ञ भी थे। 

इस प्रकार आचार्य सुश्रुत के जीवन को पढ़ने पर पता चलता है कि प्राचीन समय में भारत का विज्ञान समृद्ध था। 

REFERENCE :jivani.org

2 आर्यभट्ट:-

अक्सर खगोल शास्त्र के जनक के रूप में ख्याति प्राप्त महान गणितज्ञ और भारत के गौरव श्री आर्यभट्ट जी का जन्म ईस्वी सन् 476 में कुसुमपुर पटना में हुआ था उन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में आर्यभट्टीय नामक ग्रंथ की रचना की थी जिसकी चारों ओर भूरि भूरि प्रशंसा हुई थी। उन्होंने न केवल शून्य और दशमलव प्रणाली का आविष्कार किया अपितु यह भी बता दिया था कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है,  आर्यभट्ट महोदय ने चंद्रग्रहण की सही व्याख्या की थी तथा यह भी परिकलित किया था कि पृथ्वी की परिधि 24835 मील है इसके साथ ही उन्होंने पाई के मान की गणना भी सर्वप्रथम की थी गणितीय गणनाओं को सरल बनाने के लिए सर्वप्रथम समीकरणों का आविष्कार करने वाले आर्यभट्ट महोदय को यह भी पता था कि सूर्य के प्रकाश के कारण ही चंद्रमा एवं अन्य ग्रह चमकते हैं ऐसे महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक मस्तिष्क के धनी व्यक्तित्व को भारत भूमि के निवासी सदा सदा नमन करते रहेंगे

REFERENCE :-www.computerguidehindi.com

3.चरक :-

 कुषाण राज्य के राजवैद्य के रूप में प्रसिद्ध चरक महोदय का जन्म संभवत: नागवंश में हुआ था। उन्होंने शरीर विज्ञान भ्रूण विज्ञान और निदान शास्त्र के पर चरक संहिता नामक प्रसिद्ध एवं उपयोगी ग्रंथ की रचना की थी। चरक साहित्य के अंतर्गत पालि भाषा के भी कुछ शब्द मिलते हैं।  चरक पहले ऐसे विद्वान थे जिन्होंने मानव शरीर के पाचन क्रिया तथा प्रतिरक्षा के बारे में बताया था साथ ही उनका यह भी कहना था कि निदान उपचार की तुलना में ज्यादा आवश्यक है। उनके अनुसार वात तथा कफ और पित्त दोष के कारण रोग उत्पन्न होते हैं वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह भी बताया था कि प्रत्येक शरीर में समान मात्रा में लिया गया भोजन भिन्न-भिन्न दोष उत्पन्न कर सकता है अर्थात शारीरिक भिन्नता अस्तित्व में है। 

REFERENCE :-  jivani.org

4. महावीराचार्य:-

9 वीं सदी में गुलबर्ग में जन्मे महावीराचार्य महोदय ने 850 ईसवी में गणित सार नामक एक ग्रंथ की रचना की थी वे जैन धर्म से संबंध रखते थे। पहली बार उन्होंने वृत्त तथा आयत आदि के क्षेत्रफल ज्ञात करने के बारे में जानकारी दी थी इसके अलावा उन्होंने  समुद्विबाहु तथा विषमबाहु त्रिभुजों के क्षेत्रफल ज्ञात करने की विधियों के बारे में भारतीय गणित के इतिहास में पहली बार वर्णन किया था साथ ही साथ द्विघात समीकरणों को हल करने की विधियों के बारे में भी नवीन व मौलिक सुझाव दिए थे। क्रय विक्रय तथा लघुत्तम समापवर्तक निकालने की विधियों के बारे में महावीराचार्य ने 850 ईसवी में ही बता दिया था इसके अलावा इन्होंने विभिन्न भिन्नो को व्यक्त करने के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया था

REFERENCE:-www.dilsedeshi.com

धन्यवाद 

Writer :-Rajendra Mina

जय हिंद जय भारत 

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