Posts

भारतीय अर्थव्यवस्था और विनिवेश

 भारतीय अर्थव्यवस्था और विनिवेश  भूमिका-                  भारतीय  अर्थव्यवस्था विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है आजादी के बाद नियोजन के प्रारंभिक वर्षों में मिश्रित अर्थव्यवस्था को आर्थिक विकास का आधार बनाया गया अर्थात भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों क्षेत्रों का महत्व होगा देश की  तात्कालिक जरूरतों के अनुसार कुछ उद्यमों  को सार्वजनिक क्षेत्र में रखा गया और कुछ उद्यमों को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया । बदलते वक्त देश की जरूरतों के अनुसार समय-समय पर सार्वजनिक क्षेत्र का विनिवेश अर्थात निजी करण किया गया और इनको भी निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया । कुछ अर्थशास्त्री इस विनिवेश के पक्ष में होते हैं और कुछ विपक्ष में लेकिन विनिवेश का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक उपक्रमों को बाजार की शक्तियों के अधीन लाना और इनके प्रबंधन को अधिक व्यवसायिक और लाभप्रद  बनाया जाना है। इस तरह सार्वजनिक क्षेत्र की कार्यकुशलता व प्रबंधन में सुधार करना निजी करण का प्रमुख लक्ष्य माना जाता है लेकिन अधिकांश मामलों में देखा गया है कि सरकार के विनिवेश का लक्ष्य धन जुटाना रहा है और विनिवेश 

प्रकृति की समायोजन क्षमता

प्रकृति के  पास समायोजन की सबसे बेहतर क्षमता है ।मौजूदा दौर मुश्किल से भरा है हर कोई इससे परेशान है बाहर निकलना चाहता है इस मुश्किल से। इस दौर में भी हमें यहां दो पक्ष दिखाई देते हैं एक इस महामारी का सकारात्मक पक्ष और दूसरा इसका नकारात्मक पक्ष नकारात्मक पक्ष  से सभी वाकिफ हैं कि दुनिया भर में हजारों की संख्या में मौतें हो रही हैं पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था औंधे मुंह गिरी है हर देश लगभग बंद हो गया है इसी दौरान कोरोना का एक सकारात्मक पक्ष भी दिखाई दिया जो प्रकृति में दृष्टिगोचर हुआ कोरोना के मौजूदा वक्त में सभी लोग घरों में बंद है तो कई शहरों से ऐसी तस्वीरें आई जिनमें जंगली जानवर सड़कों पर स्वच्छंद विचरण करते दिखाई दिए जो प्रकृति प्रेमियों को एक सुकून देने वाला दृश्य था। मौजूदा दौर में किए गए कई अध्ययनों में यह सामने आया की उद्योगों, हवाई उड़ानों और सतही आवाजाही के बंद हो जाने के कारण पृथ्वी की ऊपरी सतह पर कंपन कम हो गई है जो आम दिनों में बहुत ज्यादा होती है । जाहिर है कि यह स्पष्ट संकेत है कि प्रकृति अपना समायोजन कर रही है जिस तरह हम लोक डाउन के माध्यम से खुद को कोरोना जैसी महामारी से बच

संघर्ष

संप्रभा के ब्लॉग पर आपका स्वागत है  नमस्कार मै आज  इस आलेख में संघर्ष के बारे में बात करूंगा तो शुरू करते है एक प्रश्न के साथ और पूरा आलेख उसका जवाब संघर्ष क्या है ?         संघर्ष व्यक्ति के कुछ नहीं से बहुत कुछ बनने के सफर का नाम है ।हर किसी के लिए इस संघर्ष का रूप , परिभाषा अलग अलग होती है मेरे अनुसार संघर्ष दो प्रकार के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है एक सार्वजनिक उद्देश्य की प्राप्ति हेतु और दूसरा व्यक्तिगत उद्देश्य की प्राप्ति हेतु । संघर्ष जिस किसी भी उद्देश्य कि प्राप्ति के लिए हो उसका मार्ग कठिन होता है कभी कभार हम संघर्ष के इस मार्ग में विचलित होकर धैर्य  खोने लगते हैं और हमें लगता है की हम ये नहीं कर पाएंगे उस समय उन लोगो का जीवन संघर्ष हमें प्रेरणा देता है जिन्होंने कठिन संघर्ष के द्वारा अपने उद्देश्यों को हासिल किया होता है ।  व्यक्तिगत जीवन में अपने निजी उदेश्यो की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले संघर्ष की अपेक्षा सभी लोगो के कल्याण के उद्देश्य से किए जाने वाले संघर्ष का मार्ग कठिन होता है । इस संदर्भ में एक ऐसे शख़्स का जिक्र आवश्यक है जिसने एक आदर्श की प्राप्ति ह

विकसित भारत के स्वप्न को पूर्ण करने में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण

 आप सभी का सकारात्मकता के प्रसारण हेतु स्थापित एवं संचालित संगठन सम्प्रभा के ब्लॉग पर स्वागत है इस लेख के अंतर्गत हम शिक्षक की सामाजिक, नैतिक एवं विकासात्मक भूमिका पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे 1) सामाजिक क्षेत्र में यदि हम शिक्षक के बारे में बात करते हैं तो वह समाज का एक तबका जिसे मान मर्यादाओं का संपूर्ण ज्ञान है लेकिन किताबी ज्ञान उतना नहीं है तथा दूसरा तबका अर्थात् विद्यार्थी वर्ग जो अभी ना ही तो पुरुषोचित एवं स्त्रियोचित भूमिकाओं को प्राप्त कर पाया है और ना ही वह अभी रीति-रिवाजों का संपूर्ण ज्ञान रखता है के मध्य सामंजस्य स्थापित करने का कार्य करता है। शिक्षक भली भांति जानता है कि सामाजिक परिप्रेक्ष्य में किसी निर्णय के समय विज्ञान के तर्क का सहारा लिया जाए या जनजीवन की आस्था का। इसलिए राष्ट्र से रूढ़िवादी मान्यताओं को दूर करने तथा संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए  शिक्षकों के कंधों पर एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।  2) नैतिक परिप्रेक्ष्य में यदि हम बात करें तो शिक्षक को राष्ट्र के नैतिक चरित्र का मुखौटा होना चाहिए क्योंकि देश का असली विकास फैक्ट्रियों और कारखानों में नहीं अ